आदिवासी पहचान पर…

आदिवासी लोगों, जैसे मुरिया, गोंड, माड़िया, हल्बा, धुरवा, का अपना अलग-अलग रहन-सहन, वेशभूषा-पहनावा, त्यौहार, देवी, गुड़ी, खान-पान, नाच होता है| हमारे त्यौहार कई सारे हैं जैसे-बीजा पंडुम, कोड़ता, कुरमी, ताड़माने, सिकुड़पंडुम| ये सभी बहुत धूम-धाम से मनाते हैं| हर एक जाति वाले अलग-अलग त्यौहार मनाते हैं| भाषा भी अलग-अलग बोलते हैं| हल्बा और धुरवा लोगों …

डुंडुल पिल्ला (धूल वाले बच्चे)

डूंडी-डूंडी पिल्लानोम डुंडुल आस करसानोम टायर तिन गाड़ी इन्जो करसानोम सगा इन्जो करसानोम . मेंडी-मेंडी पिल्लानोम मुंडा आस मेंड करसानोम चुडीलोम पिल्लानोम करसो-करसो पेड़सानोम | ———————————- नंगे-पुंगे बच्चे गंदे होकर खेलेंगे टायर को गाड़ी बना के खेलेंगे सगा बोल के खेलेंगे . टिंगने-टिंगने बच्चे झगड़ के भी खेलेंगे छोटे से बच्चे खेलते-खेलते बढ़ेंगे ———————————- (चित्र …

हमारे गाँव में इसाई धर्म

हमारे गाँव में इसाई धर्म नहीं था, लेकिन पड़ोसी गाँव के लोग प्रचार करने पर, उनके गाँव पूजा करने के लिए जाते थे| पूजा के लिए जाते-जाते अपने गाँव में भी चर्च बनाए और पूजा करते थे| धीरे-धीरे और भी लोग जुड़ने लगे और पूजा करते थे| ऐसे ही पूजा करने से होता, लेकिन जब …

मेरे गाँव के खेल

मेरे गाँव मे बहुत से अलग–अलग खेल खेलते हैं| जहाँ तक मुझे पता है.. गुल्ली डंडा ,चक्का, कोंगो काल, कूच-कूच कोरदी, देस तिड़िया ईसड़ती, बाटी, जीरको, कम्क्पेन्डुल, गूटेरी या बर्रेडांडी या नमक, पिट्टुल, इन्टुड़ -पुन्टुड़, गोबर डंडा, छुपन-छुपाई, वेटा, सग्गा खेल, नक्सली-पुलिस और क्या-क्या दुनियादारी खेलते हैं| बहुत से खेलों के तो कुछ नाम ही …

दादो ना माटा

ठंडी के दिन थे पास बैठे दादा जी थे मंद पीते वे कुछ कहते थे        क्या जवानी था मेरा        जैसा कि अभी तुम्हारा        बीते यादें ना होगा दोबारा चाहे कोई भी काम हो झटपट मै करता था सुबह चाहे शाम हो       अब काम ना धाम       बैठे-बैठे हो गया आलसीराम अब …

चल महुआ बीन

कोरोना के वो दिन मम्मी कहती चल महुआ बीन गप्पा भर महुआ बीनता कितने हैं मैं नहीं गिनता अगर गिनते-गिनते बीनता तो मैं बेहोश हो गिर पड़ता | . अनेक त्योहारों में शामिल होता नाच-गान का मज़ा लेता आम त्यौहार में शिकार कर लेता शिकार का मैं जोर पी देता | . विभिन्न फलों को …

गुरूजी और मैडम मन की कुछ बातें

बालक आश्रम के आधीक्षक हम पर चिल्लाते थे : “सूअर नहीं तो ! ज्यादा जानता हूँ बोलके बात कर रहा है क्या ?”  दोनों पैरों को बांध के नदी मे फेंक देने से पता चलता | ऐ नालायक इधर आ | ————————————————– एक सर जो हमारे आश्रम के बगल के रूम मे रहते थे और …

मतवार*

दारु पीते हैं मुर्गा बाजार में गाँव के त्यौहारों में, और पीकर आ जाते हैं घर में घर के लोग रहते डर में कहीं झगड़ा ना कर बैठे नशे मे आते मतवार किसी पर भी करते वार |        वे ऐसे गुनगुनाते जैसे        हवाओं से बातें कर रहे हों        दिनभर दारू पीते घूमते        रात को …

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