हमारे गाँव में इसाई धर्म

हमारे गाँव में इसाई धर्म नहीं था, लेकिन पड़ोसी गाँव के लोग प्रचार करने पर, उनके गाँव पूजा करने के लिए जाते थे| पूजा के लिए जाते-जाते अपने गाँव में भी चर्च बनाए और पूजा करते थे| धीरे-धीरे और भी लोग जुड़ने लगे और पूजा करते थे|

ऐसे ही पूजा करने से होता, लेकिन जब गाँव के वड्डे लोग वड्डे करते हैं तब इसाई पूजा वाले पहले ही गाय मार के खाते थे| गाँव के गुड़ी में, यानी मंदिर में, वड्डे करने नहीं आते थे इसलिए गाँव के सियान और वड्डे लोग इसका मीटिंग लिए जिसमें इसाई धर्म को मानने वालों को समझा के देखे कि पूजा करते हो तो ठीक है लेकिन गाय-वाय पहले मार के मत खाओ|

तब भी इसाई धर्म वाले मानने से इनकार कर दिए| इसलिए गाँव के लोग उन्हें बहुत मारे, उनके पुस्तक जला दिए| अन्दर छुपे हुए वाले को भी ढूंढकर मारे|

इनमें से एक मेरी बुआ थी| गाँव के हर किसी-किसी के भाई-बहन थे, लेकिन गाँव की तरफ से मिलकर पिटाई कर रहे थे| वे लोग फिर भी नहीं माने इसलिए इन्हें गाँव से भगा दिया गया| वे अब सुकमा में रहते हैं| अब इन्हें गाँव में आने पर तो घर में घुसने ही नहीं देते हैं| मेरे पिताजी तो बुआ से बात भी नहीं करते हैं| अब वे इमली, आम, छीन्द गिराकर सुकमा ले जाते हैं|

मुझे लगता है कि इन्हें नहीं भगाना था क्योंकि वे अब अपना जल-जमीन, फल-फूल छोड़ कर शहर में रह रहे हैं| लेकिन एक तरफ से लगता है कि भगाना था क्योंकि वड्डे लोग कहते थे कि वे लोग वड्डे करने से पहले मांस खाने पर देवता नहीं मानता है| ऐसा वड्डे लोग कहते हैं| इसलिए मुझे लगता है कि इन्हें गाँव से भगाना था|

मुझे लगता है कि इन्हें इसाई धर्म छोड़ के अपना देवी-देवता, आनल पेन को ही पहले जैसा मानने लगें|

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