दारु पीते हैं मुर्गा बाजार में
गाँव के त्यौहारों में, और
पीकर आ जाते हैं घर में
घर के लोग रहते डर में
कहीं झगड़ा ना कर बैठे
नशे मे आते मतवार
किसी पर भी करते वार |
वे ऐसे गुनगुनाते जैसे
हवाओं से बातें कर रहे हों
दिनभर दारू पीते घूमते
रात को घर मे झगड़ा करने आते
नशे मे ये नासमझ होते
समझाओ तो हमसे ही भिड़ जाते
जो गया छुड़ाने उससे भी भिड़ जाते |
मतवारों से लड़ना आसान नहीं
मतवारों से न लड़े, समझदार वही |
* गाँवों, बाजारों मे हर रोज दारु पीकर नशे मे रहते हैं | इन्हें होश नहीं रहता वे मतवार हैं |