मेरे गाँव का नाम नयानार
बड़ेपारा है| यहाँ पर सभी आदिवासी लोग रहते हैं और यहाँ की
मुख्य भाषा गोंडी है|
यहाँ लगभग 85 घर हैं और कुल
620 के आसपास लोगों की जनसंख्या है| 620 में 2% मात्र लगभग पढ़े-लिखे हैं| अभी लगभग
35-40 बच्चे पढ़ रहे हैं|
सभी आदिवासी हसी-ख़ुशी से
रहते हैं| पहाड़ी पास होने के कारण उन्हें पहाड़ी से बहुत
कुछ सुविधा है| जैसे- बाँस को काटकर लाते हैं और घर बनाते हैं, बास्ता जो सब्जी बनाकर खाते हैं, फुट्टू (मशरूम), चूल्हा
जलाने के लिए लकड़ी, अनेक प्रकार की भाजी-सब्जियाँ, अनेक प्रकार के फल जैसे- चार,
काजू, आदि|
मैं ज्यादा सब्जियों, फलों के नाम इसलिए नहीं लिखा क्योंकि हिंदी में उन्हें
क्या बोलते हैं ये मैं नहीं जानता पर मैं गोंडी में लिख रहा हूँ जैसे- एड़का (चार),
ईडो (काजू), ईकू, नेंडू (जामुन), मरका (आम), काड़ापेड़ेक, कमला, नोड़ुंगा कुसिड़, करकी
(बास्ता), अवल, झाम छाती जिसे गोंडी में नेंड कूक बोलते हैं|
हमारे गाँव में जब कोई व्यक्ति
बीमार हो जाए रहता है तो उसे अस्पताल नहीं ले जाते हैं बल्कि वड्डे लोगों के पास
ले जाया जाता है| वड्डे जो देवी-देवता को
मानता है| वड्डे जब वड्डे कर देता है तब उसे दारू, मुर्गी खिलाते-पिलाते हैं| ठीक नहीं होने से hospital ले जाते हैं|
हमारे गाँव के लोग अक्सर त्यौहारों
में बहुत पीते हैं| इसमें मुख्य है- महुआ दारू,
लंदा, छीन्द रस, ताड़ी रस पीकर पूरा नशे में घर जाते हैं और अपने-अपने पत्नियों को
पीटते हैं, कहीं कोई जहर पीकर मरते हैं तो कहीं फांसी लटक के भी मरते हैं|
जहर को चिड़ियों को मारने के
लिए लाते हैं| गर्मी में जब चिड़ियाँ शिकार करने जाती है तब
कुछ लोग उन्हें जहर से भी मार देते हैं| गर्मी में पानी
की कमी होती है और चिड़ियाँ पानी की तलाश में रहते हैं और छाँव वाले जगह में रहते
हैं| आदमी लोग एक चिपड़ी में थोड़ा पानी डालकर उसमे
जहर मिलाकर छाँव में रख देते हैं तब पक्षी पानी पीकर मर जाते हैं और फिर घर लाकर बनाते हैं|
हमारे गाँव वाले बहुत शिकार
करते हैं| गाँव के सभी लोग मिलकर तीर-धनुष पकड़कर जंगली सूअर का शिकार करने जाते
हैं| जंगली सूअर मार कर लाते हैं और भूंजकर
काटते हैं और कच्चा बाँटते हैं और फिर घर लेजाकर बनाके खाते हैं| अधिकतर लोग
चिड़िया का शिकार करते हैं| इसमें समूह बनाके जाते हैं
जैसे 7-8 जन और मारकर बनाके खाते हैं|
हमारे गाँव में बहुत खेलते
हैं जैसे- गोंडी में- कोंगो, बाटी, गुल्लीडंडा, गोबरडंडा,
जीरको, कितकित, बराडांडी, क्रिकेट आदि| इन खेलों को
खेलने में हम सभी को बहुत मजा आता है| लेकिन हमारे
गाँव में शादी किये वाले नहीं खेलते हैं|
आदिवासी लोगों को मुख्य रूप
से इसमें पैसा मिलता है- महुआ बीनकर सुखा के बेचने पर, तेंदू पत्ता तोड़ने पर, छीन्द रस
बेचने पर, महुआ मंद बेचने पर, सल्फी रस बेचने पर, मजदूरी करने
पर आदि|
हमारे गाँव में बूढ़े लोगों
को बहुत कुछ आता है जैसे- गाय बांधने वाला बनाना, बाँस का गप्पा बनाना और बहुत कुछ|
गोंड मन अपने भाषा में गाना
गाकर नाचते हैं और साथ में ढोल भी बजाते हैं| लेकिन आजकल कभी-कभी डी.जे. डालते हैं|
यहाँ के सभी लोग हर काम मन
लगाकर करते हैं| यहाँ लोग बहुत खेती करते हैं| हल जोतने के लिए 5 बजे जाते हैं और जुताई करते हैं| लगभग 9-10 बजे तक जुताई करते हैं और फल खाते घर जाते हैं|
फिर घर में खाना बनाकर खाते हैं|
इसी तरह गाँव में चलते रहता
है|
मैं आने वाले दिनों में
आपको गर्मी में लोग क्या-क्या करते हैं और ठंड में लोग क्या-क्या करते हैं उसके
बारे में बताऊंगा|