मैं इतने दिनों से क्यूँ नहीं लिख रहा था?

मैं जिस स्कूल में पढता हूँ उस स्कूल का नाम पोटा केबिन पाकेला है| स्कूल में एक-एक करके सभी बच्चे बीमार होते गए| डॉक्टरों को स्कूल में ही बुला लिए और इलाज शुरू किया | बीमारी फटाफट फैल रही थी| तब लगभग 110 बच्चे बीमार हो गए| जो बच्चे ठीक थे उन्हें एक अलग जगह ले जाया गया ताकि वो संक्रमण से बचे रहें| मैं और मेरा एक दोस्त घर जाना चाहते थे पर अधीक्षक ने छुट्टी नहीं दिया| हम अगले दिन मेरे दोस्त के गाँव भाग गए|

उसके गाँव का नाम वर्देलतोंग है| मैं अपने दोस्त के गाँव 7-8 दिन रुका| यह गाँव काफी अन्दर है| लगभग 1 साल पहले , गाँव में 2 कोकलेन को नक्सली लोग जला दिए थे|

गाँव में हमने काम भी किया जैसे बाड़ी बनाने के लिए बांस मन लाना, तेंदू पत्ता के पौधे को रांपा से काटना क्योंकि काटकर वहाँ फसल उगाने के लिए|

गणेश चतुर्थी भी था, तो शाम को गाय बांधकर पोलमपल्ली पंचायत में डी.जे. नाचने जाते थे|

ये सब करते हुए टाइम नहीं मिल पाता था इसलिए मैं नहीं लिख पा रहा था|

मेरी स्कूली शिक्षा और बचपन : भाग 1

मैं जब छोटा था तब आंगनबाड़ी जाता था| आंगनबाड़ी में हमें खाने में रेडी-टू-ईट, चाँवल, दाल, गुड़, सोयाबीन-बड़ी मिलता था| हम लोग घर से थाली पकड़कर आंगनबाड़ी जाते थे, वो भी बिना नहाए, नंगा भी जाते थे और खाना जब तक नहीं पकता था तब तक हम लोग खेलते रहते थे| खाना पकने के बाद खाना लेकर घर आ जाते थे और सब मिलकर खाते थे|

धीरे-धीरे हम बढ़ते गए और फिर तब गाँव वाला स्कूल में डाल दिए गए| इस स्कूल में पढने जाते और कभी भी घर भागकर आ जाते थे| यहाँ के गुरूजी कभी आते थे तो कभी नहीं| कभी आते भी थे तो हमें कुछ नहीं पढ़ाते| मध्यान्ह भोजन के चपरासी एक दिन बोले कि बच्चों को पढ़ाओ तो उन्होंने कहा बच्चे मन बदबू मार रहे हैं और स्कूल के बाहर महुआ पेड़ के पास कुर्सी-टेबल निकालकर अपना काम करते रहते|

फिर मैं ये स्कूल में नहीं पढ़ना चाहा तो मेरे घरवाले भंडारास में हॉस्टल ढूंढ दिए| उसमें थोड़ा बहुत पढ़ाई होता था| गुरूजी हल्ला करने पर डंडा पकड़कर आता था और बोलता था कि अनार के अ, ABCD, पहाड़ा, गिनती लिखकर दिखाओ और तब हम पहाड़ा पुस्तक से छापकर ले जाते थे| कभी-कभी अनार के अ, ABCD, गिनती को ब्लैकबोर्ड पर लिखकर एक-एक को पढ़ाने बोलता था और बाकि को उसको दोहराने बोलता था|

मैं हॉस्टल में सुबह उठकर, नहाके, नास्ता करता था और 9 बजे खाना खाता था| 10 बजे स्कूल बैठते थे और 1 बजे मध्यान्ह भोजन का छुट्टी होता था| मध्यान्ह भोजन खाकर फिर स्कूल बैठते थे| स्कूल छुट्टे होने पर हम लोग बहुत जोर से चिल्लाते हुए रूम की ओर दौड़ कर जाते थे जैसे हमें जेल से आज़ादी मिली हो| चार बजे छुट्टी के बाद लोग अपना-अपना काम करते थे जैसे कोई क्रिकेट खेलता तो कोई सर लोगों के रूम में टी.वी. देखता, कोई तेंदू फल, चार फल, काजू आदि ढूँढने जाता| फिर शाम को प्रार्थना होता था| उसमें मुख्य सरस्वती वंदना जैसे गाते थे|

गुरुवार बाजार भंडारास के पास आता था और ये हमारे गाँव के पास था| बाजार में हमारे घर वाले आएंगे बोलके हम स्कूल से बाजार जाते थे| मिलने से पैसा 10, 20 देते थे और भजिया, बिस्कुट हाथ में पकड़ा देते और स्कूल भेज देते| 10, 20 रुपये को भी भंडारास के दूकान में एक-दो दिन में खा जाते|

हम लोगो के स्कूल में bathroom और टॉयलेट नहीं था इसलिए हम जग, मग्गा या बाटल से पानी पकड़कर खेत मन साइड टॉयलेट जाते थे|

नहाने के लिए लड़के लोगों को एक हैंडपंप और लड़कियों के लिए एक था| तो अलग-अलग नहाते थे| या फिर नाला, तालाब तरफ नहाने जाते और उधर ही दातुन करते थे|

हम लोग अलग से सब्जी बनाके खाने के लिए अलग से कुछ ढूँढने जाते| मेरा भैया भी यहीं पढ़ रहा था| एक बार मेरा भैया और मैं और कुछ दोस्तों के साथ केकड़ा पकड़ने गए| मेरा भैया केकड़े के छेद में हाथ डाला| वहाँ कुछ तो गीला गीला लग रहा था तो मेरे भैया बोला की अरे! ये तो मेंढक पैर जैसा लग रहा है| ऐसा बोलके उसे पकड़कर बाहर निकाला तो वह पानी वाला डोंडिया सांप था| तब हम लोग बहुत हँस-हँस के भागने लगे| मेरे भैया भी चिल्लाकर भागने लगा|

हम लोग भंडारास स्कूल में महुआ बीनकर बिल्डिंग ऊपर सुखाते और बेचते थे| इमली भी बीनने जाकर बेच देते थे| उसमे हमें 30, 20 रुपये मिलने पर दूकान में लड्डू-वड्डू खाते थे|

चाँवल के लिए हम अधिकारीरास पंचायत जाते थे| ये स्कूल से 3 किलोमीटर था| हम सभी अपना-अपना झोला पकड़ के जाते थे और उसमें चाँवल लेकर आते थे|

मैं भंडारास में तब 3री में पढ़ रहा था तब वहाँ से लड़का और लड़की लोगों को अलग कर दिया गया| इसके बाद मैं कहाँ पढ़ने गया ये मैं कल बताऊंगा|

(चित्र में: कोडरीकोसुम गाँव से अन्नू और दीनू)

मेरा गाँव : नयानार

मेरे गाँव का नाम नयानार बड़ेपारा है| यहाँ पर सभी आदिवासी लोग रहते हैं और यहाँ की मुख्य भाषा गोंडी है|

यहाँ लगभग 85 घर हैं और कुल 620 के आसपास लोगों की जनसंख्या है| 620 में 2% मात्र लगभग पढ़े-लिखे हैं| अभी लगभग 35-40 बच्चे पढ़ रहे हैं|

सभी आदिवासी हसी-ख़ुशी से रहते हैं| पहाड़ी पास होने के कारण उन्हें पहाड़ी से बहुत कुछ सुविधा है| जैसे- बाँस को काटकर लाते हैं और घर बनाते हैं, बास्ता जो सब्जी बनाकर खाते हैं, फुट्टू (मशरूम), चूल्हा जलाने के लिए लकड़ी, अनेक प्रकार की भाजी-सब्जियाँ, अनेक प्रकार के फल जैसे- चार, काजू, आदि|

मैं ज्यादा सब्जियों, फलों के नाम इसलिए नहीं लिखा क्योंकि हिंदी में उन्हें क्या बोलते हैं ये मैं नहीं जानता पर मैं गोंडी में लिख रहा हूँ जैसे- एड़का (चार), ईडो (काजू), ईकू, नेंडू (जामुन), मरका (आम), काड़ापेड़ेक, कमला, नोड़ुंगा कुसिड़, करकी (बास्ता), अवल, झाम छाती जिसे गोंडी में नेंड कूक बोलते हैं|

हमारे गाँव में जब कोई व्यक्ति बीमार हो जाए रहता है तो उसे अस्पताल नहीं ले जाते हैं बल्कि वड्डे लोगों के पास ले जाया जाता है| वड्डे जो देवी-देवता को मानता है| वड्डे जब वड्डे कर देता है तब उसे दारू, मुर्गी खिलाते-पिलाते हैं| ठीक नहीं होने से hospital ले जाते हैं|

हमारे गाँव के लोग अक्सर त्यौहारों में बहुत पीते हैं| इसमें मुख्य है- महुआ दारू, लंदा, छीन्द रस, ताड़ी रस पीकर पूरा नशे में घर जाते हैं और अपने-अपने पत्नियों को पीटते हैं, कहीं कोई जहर पीकर मरते हैं तो कहीं फांसी लटक के भी मरते हैं|

जहर को चिड़ियों को मारने के लिए लाते हैं| गर्मी में जब चिड़ियाँ शिकार करने जाती है तब कुछ लोग उन्हें जहर से भी मार देते हैं| गर्मी में पानी की कमी होती है और चिड़ियाँ पानी की तलाश में रहते हैं और छाँव वाले जगह में रहते हैं| आदमी लोग एक चिपड़ी में थोड़ा पानी डालकर उसमे जहर मिलाकर छाँव में रख देते हैं तब पक्षी पानी पीकर मर जाते हैं और फिर घर लाकर बनाते हैं|

हमारे गाँव वाले बहुत शिकार करते हैं| गाँव के सभी लोग मिलकर तीर-धनुष पकड़कर जंगली सूअर का शिकार करने जाते हैं| जंगली सूअर मार कर लाते हैं और भूंजकर काटते हैं और कच्चा बाँटते हैं और फिर घर लेजाकर बनाके खाते हैं| अधिकतर लोग चिड़िया का शिकार करते हैं| इसमें समूह बनाके जाते हैं जैसे 7-8 जन और मारकर बनाके खाते हैं|

हमारे गाँव में बहुत खेलते हैं जैसे- गोंडी में- कोंगो, बाटी, गुल्लीडंडा, गोबरडंडा, जीरको, कितकित, बराडांडी, क्रिकेट आदि| इन खेलों को खेलने में हम सभी को बहुत मजा आता है| लेकिन हमारे गाँव में शादी किये वाले नहीं खेलते हैं|

आदिवासी लोगों को मुख्य रूप से इसमें पैसा मिलता है- महुआ बीनकर सुखा के बेचने पर, तेंदू पत्ता तोड़ने पर, छीन्द रस बेचने पर, महुआ मंद बेचने पर, सल्फी रस बेचने पर, मजदूरी करने पर आदि|

हमारे गाँव में बूढ़े लोगों को बहुत कुछ आता है जैसे- गाय बांधने वाला बनाना, बाँस का गप्पा बनाना और बहुत कुछ|

गोंड मन अपने भाषा में गाना गाकर नाचते हैं और साथ में ढोल भी बजाते हैं| लेकिन आजकल कभी-कभी डी.जे. डालते हैं|

यहाँ के सभी लोग हर काम मन लगाकर करते हैं| यहाँ लोग बहुत खेती करते हैं| हल जोतने के लिए 5 बजे जाते हैं और जुताई करते हैं| लगभग 9-10 बजे तक जुताई करते हैं और फल खाते घर जाते हैं| फिर घर में खाना बनाकर खाते हैं|

इसी तरह गाँव में चलते रहता है|

मैं आने वाले दिनों में आपको गर्मी में लोग क्या-क्या करते हैं और ठंड में लोग क्या-क्या करते हैं उसके बारे में बताऊंगा|

मैं क्यूँ लिख रहा हूँ?

मुझे कहानियाँ और कविता पढ़ना बहुत अच्छा लगता है| मैं अलग-अलग कहानियाँ, कविता पढ़ता रहता हूँ| मुझे ये सब पढ़ने में बहुत आनंद आता है|

कहानियाँ, कविता पढ़कर मैं खुद अलग से कहानियाँ, कविता बनाकर अपने कक्षा वालों को सुनाता रहता हूँ| और मेरे कक्षा के साथी भी लिखकर सुनाते है| हमें अपने अलग अलग गाँव की कहानी सुनने में बहुत मज़ा आता है|

जितना मैं कहानी, कविता पढ़ता हूँ उतना ही अन्दर से कहानी, कविता बनते रहते हैं| लिखकर दूसरों को सुनाने में सच में बहुत ख़ुशी होती है|

मेरी कुछ मनपसंद पुस्तकें हैं: हैरी पॉटर और पारस पत्थर, कजरी गाय फिसलपट्टी पर, पहाड़ जिसे एक चिड़िया से प्यार हुआ|

मैं असली गाँव में गोंडी भाषा बोलता हूँ| लेकिन हिंदी में लिख रहा हूँ क्योंकि हमारी भाषा में लिखने पर दूसरो को पढ़ने में समस्या होगी| हमारी भाषा लिखने में भी मुश्किल है पर मैं हमारी भाषा में लिखने का प्रयास करूँगा| बचपन से हिंदी में ही पढ़ना-लिखना सीखा है इसलिए मुझे हिंदी में लिखना आसान लगता है|

दूसरी कविता

आम पेड़

आम पेड़ भाई आम पेड़

फलता फूलता आम पेड़

छोटे आम लगते हैं कच्चे

बड़े आम लगते हैं पक्के

कच्चे आम लगते हैं खट्टे

पक्के आम लगते हैं मीठे

दो अक्षर का इसका नाम

कौन ना जाने उसका नाम

खूब खाओ आम फल को

स्वस्थ रखेगा हम सबको

लोग इसको पल-पल खाना चाहते

इसलिए इसका अचार बनाते

और कुछ लोग इसका जूस बनाते

जैसे नाम माजा फ्रूटी रखते

इसलिए तो खाता पीता

मुझे बहुत आनंद आता |

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आम से जुड़ी कुछ बातें……….

हमारे गाँवों में लोग आम छीलकर सुखाते हैं और बाजार में बेचते हैं|

कुछ आम को सब्जी बनाके खाते हैं और पका वाला आम बहुत खाते हैं| हर समय आम खाना चाहते हैं इसलिए पका आम छीलकर सुखाते हैं और बरसात में भी खाते हैं|

मुझे आम बहुत अच्छा लगता है| मैं जब शिकार करने जाता हूँ तो भूख लगने पर आम चूसता हूँ और फिर थोड़ा आराम करके शिकार करता हूँ| फ्रूटी, आचार मुझे बहुत अच्छा लगता है इसलिए मैं आम पेड़ का कविता लिखा हूँ|

एक कविता

चिड़ियों की आज़ादी

चिड़ियों की एक ऐसी आजादी

मनमानी उड़ते जाते

दूसरे देश जाने के लिए

न चाहिए वीजा पासपोर्ट

देश विदेश घूमकर आये

पर दुष्ट मनुष्य यात्री पक्षी को

मार के खा जाता है

पर चिड़िया के परिवार वाले

उसका इन्तेजार करते होंगे

और वापस न आने पर ढूँढने निकले

पर ना मिला वह पक्षी

चिड़िया के परिवार वाले कितने रो रहे होंगे

ये हम नहीं बता सकते

पक्षी को दुष्ट मनुष्य

पिंजरे में बंद रखता

जैसे हमें पुलिस जेल में रखता

तो सोचो ज़रा कैसा लगता होगा पक्षी को

ये हम नहीं बता सकते |

मैं कौन हूँ?

मेरा नाम हिड़मा वेट्टी है|

मैं कक्षा 9 वी में पढ़ता हूँ|

मैं अपने जीवन के बारे में बताना चाहता हूँ|

मेरे गाँव का नाम नयानार बड़ेपारा है| यह गाँव सुकमा जिले में है| और सुकमा जिला भारत के छत्तीसगढ़ राज्य में है|

मैं यहाँ अपने परिवार के साथ हसी-ख़ुशी से रहता हूँ| मेरे घर में पिताजी, माँ, चाचा, भैया, दो बहनें, कुल सात लोग रहते हैं|

माँ खेती के साथ-साथ, खाना बनाना, महुआ बीनना, दारु बनाना, पहाड़ी से लकड़ी काट के इकठ्ठा करके घर लाना आदि काम करती है| पिताजी छीन्द रस बेचकर हमारे लिए भजिया, बिस्कुट खाने के लिए लाकर देते हैं और हम चार भाई-बहन उनका इंतज़ार करते रहते हैं कि कब आएंगे| वो घर के लिए सब्जियाँ भी खरीद के लाते हैं| और बाज़ार नहीं लगने वाले दिन अपने दोस्तों के साथ रस पीकर घूमते रहते है| अगर एक बार पीना शुरू कर दिया तो एक महीने बाद छीन्द ख़तम होने पर ही अच्छा होता है|

चाचा भी रस बेचता है| लेकिन उन्हें शिकार करना बहुत अच्छा लगता है| इसलिए हर समय तीर-धनुष पकड़कर घूमते रहता है| कब-कब जहर लगाकर पक्षियों को मार देता है|

हम चार भाई-बहन घर में थोड़ा-थोड़ा मदद कर देते हैं जैसे बहन मन झाड़ू लगाते हैं और साथ में मैं भी लगाता हूँ| बर्तन धोते हैं| पोताई भी करते हैं|

हम दोनों भाई को भी शिकार करना बहुत पसंद है| इसलिए दोस्तों के साथ या हम दोनों या चाचा के साथ या अकेले भी शिकार करने जाता हूँ और उसमें जो भी मिलता है उसे बनाकर जोर पीते हैं या उसे बाँट के खाते हैं|

हम तीन जन पढ़ रहे हैं और एक बहन नहीं पढ़ रही| वह पहले पढ़ रही थी पर घर में गाय चराने के लिए और बहुत काम रहता है इस कारण से उसने पढ़ाई छोड़ दी| मैं पिताजी को बोला पर उन्होंने मुझे डाँटा और मैं चुप हो गया|

हम दोनों भाई क्रिकेट खेलते हैं| दोनों ही अच्छे बल्लेबाज और गेंदबाज हैं| पर मैं अपने भैया से थोड़ा अच्छा खेलता हूँ| हम दोनों भाई जूनियर टीम में खेलते हैं| गाँव में सीनियर जूनियर टीम नहीं है| ज्यादा लोगों को खेलने नहीं आता है इसलिए एक ही टीम है और उसमे हम दोनों भाई भी हैं|

आज से मैं ये ब्लॉग शुरू कर रहा हूँ और यहाँ में अपने जीवन से जुड़ी कहानियाँ लिखूंगा|

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