कक्षा तीसरी में हम लड़कों को भंडारास से गोरली वाला स्कूल में भेज दिए और गोरली के लड़कियों को भंडारास भेज दिए| जब लड़के और लड़कियों को अलग कर रहे थे तब हम लोग भंडारास स्कूल छोड़कर नहीं जाना चाहते थे| हमें बुरा लगा क्योंकि हम लोग लड़कियों से दोस्ती किये थे| लेकिन मैं थोड़ा सा खुश था क्योंकि गोरली हमारे गाँव नयानर से 3 km था|
जब मैं और मेरे दोस्त यहाँ पहुँचे
तो अलग सा महसूस कर रहे थे| मैं तो थोड़ा सा डर रहा था कि
यहाँ ले लोग हमसे होशियार होंगे| पर अच्छा लगा कि वहाँ सोने की अच्छी व्यवस्था थी|
लड़के और लड़कियों को अलग
करने से बहुत लोग स्कूल छोड़ दिए| जैसे कि
भंडारास के आसपास वाले लड़के कह रहे थे कि गोरली बहुत दूर है हम वहाँ नहीं जायेंगे| गोरली के लड़की लोग कह रहे थे कि भंडारास दूर है| भंडारास वाले सबसे ज्यादा एक चीज़ से डर रहे थे, वो है नदी|
नदी से इसलिए डरते थे क्योंकि नदी बहाकर ले जाता है|
नए स्कूल में दो दिन अजीब
सा लगा पर कुछ दिन बाद हमारे नए दोस्त बन गए| मैं तो खुश था क्योंकि मेरे गाँव के
मनीष और बुदेश मेरे दोस्त थे| जब कोई मुझे
मारता या छेड़ता तो मेरे दोस्त उसको बहुत पीटते थे|
यह स्कूल हरा-भरा था| सामने बहुत सारे इमली के पेड़ थे| अन्दर आम के पेड़ लगे थे लेकिन हम आम पकने से पहले ही तोड़
के खाते थे| पपीता पेड़ भी 5-6 ठन था| ज़्यादातर
पपीता का सब्जी बनाया जाता था| कमला के छोटे पेड़ थे जो फले नहीं थे| मूंगा का एक
बड़ा पेड़ था जो कि हमें छत के ऊपर चढ़ने में मदद करता था| यह बहुत कम फलता था| और भी
छोटे मूंगा के पेड़ थे जो नहीं फलते थे| एक फनस का पेड़
भी था जो नहीं फल रहा था|
स्कूल बाउंड्री से टिका हुआ
एक मैदान था| यह मैदान काफी साफ़ रहता था| मैदान के किनारे एक
मंदिर था| इस मंदिर का नाम ठोटियाला बाबू था| मैदान के किनारे जंगल था| यहाँ पर (हमारी भाषा में) डीजल कर्रे नाम का एक पेड़ था और तेंदू और टाकामाड़क,
आम पेड़ भी थे| यहीं पर नदी है जहाँ हम लोग नहाने जाते थे| उस जगह का नाम कुमाघाटी रखे हैं| नदी के किनारे कुछ पेड़ थे जैसे (गोंडी से) मंगमाड़ा, वेड़मामाड़ा,
मड़्दमाड़ा, पाऊड़कटोंडा|
नदी के उसपार ईतागुफा गाँव
है जिसे कुमाघाटी पार करके जाना पड़ता है| इस गाँव में
एक जाम पेड़ है जो फलता है और नीबू पेड़ भी है| इस गाँव के
चारो तरफ घना जंगल और पहाड़ी है| हम लोग लकड़ी
इधर ही से ले जाते थे|
गोरली स्कूल में दोस्त लोग
डराते थे कि यहाँ बच्चे चोरी करने वाले चोर आए थे| हम लोगों के यकीन नहीं करने पर एक टूटी खिड़की दिखाते थे और बोलते थे कि यहीं
से चोर आए थे| ऐसे में हम बहुत डर गए|
हम लोग स्कूल में चार बजे
उठते थे| उठने में हमें मेड़ी भैय्या मदद करते थे जो यहाँ
के चौकीदार थे| चार बजे उठकर, बाउंड्री कूदकर मैदान में कदम रखते थे| तब 5 राउंड मैदान के लगाते थे| कुछ लोग दौड़ने के लिए ठगरू होते थे लेकिन खेलमंत्री उन्हें
दौड़ने के लिए बोलता था| दौड़ने के बाद सभी लाइन में
खड़े हो जाते थे और 2 जन सामने जाकर पीटी करवाते थे| यहाँ दो कबड्डी मैदान थे| एक में बड़े बच्चे और एक में छोटे
खेलते थे| मैं छोटे में खेलता था और फिर पाँचवी में बड़े
लोगों के साथ खेलता था| कबड्डी में कुछ लोगों को चोट लग जाता था|
खेल के बाद फिर बाउंड्री
कूद के स्कूल वापस जाते थे| फिर कम्बल, मच्छरदानी
मोड़कर सफाई करते थे| स्कूल कैंपस में झाड़ू
लगाते थे| यहाँ फनस, आम, कमला, मूंगा के पत्ते
गिरे हुए होते थे| इमली के पत्ते भी बहुत गिरते थे| झाड़ू लगाने के लिए जाटी का इस्तेमाल करते थे| ये घर से ले जाते थे| रूम के अन्दर या परची में झाड़ू लगाने के लिए एक दूसरी झाड़ू
का उपयोग करते थे| ये झाड़ू नदी पार करके जाने से मिल जाता है| इसे हमारी भाषा में कसूर कहते हैं|
कुछ लोग झाड़ू नहीं लगाते थे| ये बड़े बच्चे थे जो कि छात्रनायक जैसे लोग थे| मेसमंत्री अपना चाँवल, सब्जी देने में रहता था| सभी बच्चे झाड़ू लगाकर, साबुन पकड़कर,
बाउंड्री चढ़कर, मैदान से होते हुए नदी जाते थे|
वहीँ जंगल में दातुन तोड़कर,
चबाते, दांतों को रगड़ते हुए जाते थे| कपड़ा धोकर, नदी में डुबकी लगाकर नहाते थे| फिर जल्दी से नाश्ता ख़तम हो जाएगा बोलके फटाफट नहाकर आते
थे| नाश्ता में हमें पोहा, सूजी, मटर चना मिलता था| जो भी नहाते रहता और नाश्ते में लेट होता वो अपने दोस्त को
बोलता कि मेरा भी नाश्ता झोक देना यार| खाना और
नाश्ता चपरासी भैय्या लोग बनाते थे| चपरासी भैय्या लोगों के नाम हान्दा, सुकुलधर, गौतम बेलसरिया और धनसाय थे|
इनमें से सबसे ज्यादा
सुकुलधर भैय्या का बनाया वाला खाना पसंद करते थे| ये भैय्या भंडारास के थे| हम लोग सुकुलधर
भैय्या को भंडारास से चुन के लाए थे|
दूसरा हान्दा भैय्या का
खाना पसंद करते थे| वे बहुत चिल्लाते थे| वे मेंढकपारा, गोरली के ही
थे जो कि लगभग 1 km होगा| वे लड़के लोगों का कपड़ा भी सिल देते थे| इनके पास सिलाई मशीन भी है|
गौतम भैय्या रोकेल के थे और
यहाँ पर रूम में रहते थे| वे बहुत लम्बे थे| 12वी तक पढ़े थे इसलिए हम लोगो के कक्षा में आकर पढ़ाते थे|
धनसाय भैय्या थोड़ा सा ठगरू
थे| इनका गाँव भार्वेरास है| वे बहुत मोटू थे और height में टिंगनू थे|
नाश्ता हमें 7-8 बजे के बीच
मिल जाता था| नाश्ता खाकर थोड़ा सा पढ़ते थे और फिर 9 बजे खाना
घंटी लगता था| खाना खाकर हम स्कूल बैठते थे|
इस स्कूल का अधीक्षक
रामाराव कोड़ी था पर हम लोग उन्हें कोड़े सर बोलके बुलाते थे| ये कक्षा में हिंदी और पर्यावरण पढ़ाते थे| इंग्लिश और गणित एक मैडम पढ़ाती थी| लेकिन मैडम का ट्रान्सफर गादीरास मे हुआ| मैडम गादीरास की
ही थी| फिर कोड़े सार अकेले हो गए|
क्लास के समय भी हम लोग
अपने रूम में सोते रहते थे| क्लास में भी सोते थे|
गुरूजी तो अकेले थे, सभी क्लास को संभाल नहीं
पाते थे| हम कभी भी शौच करने नदी चले जाते थे| फिर 1 बजे मध्यान्ह भोजन छुट्टी होता| भोजन खाकर लड़के अपने-अपने रूम में आराम करते हुए सो भी
जाते थे| 2 बजे स्कूल बैठकर सीधा 4 बजे छुट्टी होता था| उसके बाद सभी बच्चे ड्रेस बदलकर मैदान जाते और फिर लाइन
लगाकर, बाँटकर, क्रिकेट खेलते| खेलने के लिए
सर लोग भी आते| सर लोग आस-पास से गाँव में पढ़ाते थे और पड़ोस
में क्वार्टर में रहते थे|राजू, नेताम, सोनकर और
राकेश वाकड़े खेलने वाले थे और चौहान, नेट्टी, मरकाम
और शोरी नहीं खेलते थे| चारो गुरूजी अच्छा खेलते थे| सोनकर जो भी बच्चा गेंद नहीं पाता था उसे ‘हट रे कांदा’ बोलते थे| लेकिन हम
बच्चों को बैटिंग नहीं मिलता था| मुझे भी
बैटिंग नहीं मिल रहा था| लेकिन मजबूरी में खेलना पड़ता था|
जो भी बच्चा क्रिकेट नहीं
खेलता उसे छात्रनायक मीटिंग लेकर सजा देता था| लेकिन कुछ लोग ईतागुफा जाम, नीबू चोरी करने जाते थे| जाम झाड़ वाला मालिक भगाकर ले जाता था पर भग जाते थे| साढ़े पाँच बजे तक खेलकर
फिर नदी में हाथ पैर धोने जाते थे| धोकर आकर फिर पारी हिसाब से रूम में झाड़ू लगाते
थे|
फिर प्रार्थना होता था|
प्रार्थना में वंदना, भजन आदि गाते थे| गाकर गिनती करते थे| इस बालक आश्रम
में 40 जन भी कुल मिलाकर नहीं होते थे| फिर थोड़ा सा
पढ़ते और फिर खाना घंटी लगाते थे| खाने वाले प्लेट में से सिर्फ कुछ ही प्लेट ठीक
थे| बाकि प्लेट बच्चे लोग खेलते समय पत्थर क्या-क्या लगा के फोड़ दिए थे| खाना खाकर फिर थोडा सा पढ़कर देखते थे| 8-9 बजे सो जाते थे| यहाँ सौर ऊर्जा वाला बिजली था| ज्यादा ऊर्जा नहीं रहने के कारण जल्दी लाइट गोल हो जाता था|
शनिवार को सुबह स्कूल होता
था| 7 बजे बैठकर, फिर 10 बजे
नाश्ता करके फिर बैठते थे| 12 बजे छुट्टी होता था|
यहाँ पर टी.वी. नहीं था इसलिए सर लोगों के यहाँ देखने जाते थे| सर लोगों के रूम
बंद होने पर गाँव में देखने जाते थे|
यहाँ बच्चे महुआ-इमली बीनकर
बेचते थे| हवा से गिरी इमली बीनकर या फिर ईतागुफा में इमली डंडा मारकर गिराते थे
और इकठ्ठा करके शनिवार बाजार में बेच देते थे| मैं भी एक बार गंगा और जोगा नाम के
लड़कों के साथ मिलकर 450 रुपये का बेच दिया| चार बजे उठकर जंगल
में छुपाया था| फिर उजाला होने के बाद सुबह बाजार में बेचकर आया|
गर्मी में परीक्षा समय self-study करने जंगल
जाते थे| उधर तेंदू, चार, काजू खाकर, नदी का पानी पीकर रहते थे| Self study करने जाते और गुलेल पकड़कर शिकार करते| शिकार लाकर मटन में आलू मिलाकर खाते थे| हम लोग नदी में मछली भी कब-कब पकड़कर खाते थे| जंगल से सब्जी भी लाकर खाते थे|
यदि हमें घर जाना होता तो
कभी भी भाग जाते थे|
इस स्कूल में बच्चे बहुत अच्छा
क्रिकेट खेलते थे| इसलिए अलग अलग स्चूलों से
टक्कर लेते थे| कभी पेदेलनार या दूधीरास वालों को खेलने बुलाते
या हम लोगों को वो बुलाकर पैसे डालकर खेलते|
यहाँ के अधीक्षक बहुत गाली
देते थे जैसे- सूअर ने तो, हाथ पैर बांधकर नदी में फेंक दूंगा, नालायक ने तो,
बेवकूफ, अपने आपको ज्यादा होशियार समझता है क्या….
आदि|
कुछ दिन बाद राकेश वाकड़े
सार जो कि क्रिकेट खेलते थे उनका ट्रान्सफर हमारे यहाँ हुआ| वे हम लोगों को अच्छा
गणित और इंग्लिश पढ़ाते थे|
हम लोग स्कूल में सब्जियाँ
भी उगाते थे| एक बार भिन्डी उगाये थे| भिन्डी बहुत फला तो खाली
भिन्डी ही खाते थे| लौकी भी उगाये थे|
गाँव में दो दूकान है| वीरो दूकान और सोमारू दूकान| अब शायद तीन दुकान हो गए हैं}
जब में पाँचवी पहुँचा तब स्कूल
में बोर खुदाया गया तब थोड़ा सा पानी का सुविधा हुई|
शनिवार-रविवार को हम लोग और
भी खेल खेलते थे जैसे- चक्का और बाटी| चक्का खेल में चप्पल से गोल काटते हैं| इस खेल में इधर-उधर बराबर खिलाड़ी होते हैं और बीच में एक
लकीर खीचते हैं| चक्का को एक तरफ वाले खिलाड़ी दूसरे तरफ फेंकने पर दूसरे तरफ वाले
खिलाड़ी चक्का को मारेंगे और चक्का रुकने पर वो टीम चक्का फेंकेगी| इस खेल में बहुत
मज़ा आता है| चक्का को डंडा से मारते हैं| यह खेल मेरे
मनपसंद खेलों में से एक है| थोड़ा-थोड़ा क्रिकेट जैसा ही
है|
एक और चपरासी भैय्या आए थे| उनका नाम हिड़मा है| वे स्कूल के
समय छुट्टी होने की घंटी लगाते थे और परीक्षा समय पानी पिलाते थे| हमें वे बोलते थे ‘केवल पानी नहीं पेपर अच्छा बनाओ’|
रात के समय शौच लगने पर नदी
जाने से डरते थे इसलिए जग मग्गा से हैण्डपंप का पानी लेकर हैंडपंप के थोड़ा सा दूर
जाकर बैठ जाते थे| पास में एक घर था| वहां के लोग हमें गाली देते थे और कहते कि इधर मत बाहर
करो|
कभी-कभी गाँव वालों के साथ
मिलके खरगोश शिकार भी जाते थे|
गोरली का स्कूल मुझे बहुत अच्छा
लगा| पूरी तरह से हमें आज़ादी थी| लेकिन जब मैं गोरली से पाँचवी पास करके घर आ रहा था तब
मुझे बहुत दुःख लगा| कुछ दोस्त आधे रास्ते तक
छोड़ने आए थे| मुझे ऐसे लग रहा था कि गोरली स्कूल में ही पढूँ
पर ये स्कूल सिर्फ पाँचवी तक ही था|