ख्वाबों में खोया

नींद में हूँ जब मैं

ख्वाबों में खोया

ख्वाब जो देखा मैंने

उसमें कुछ अनजाना कर जाता

भूल गया मैं अपनी दुनिया

रहता हूँ में ख़्वाबों में खोया

जब-जब उसमें कुछ डरावना होता

मैं अचानक उठ जाता

उठकर मैं जब देखता हूँ

फिर कुछ नहीं कर सो जाता हूँ

अगले दिन नींद से जाग

सभी को ख़्वाबों की

कहानियाँ सुनाने लगा

सपनो में खोया अच्छा लगता

जो नहीं कर पाता

वो सपनों में कर जाता

ये सब देखना टी.वी में देखने से बेहतर है

टी.वी. में जो हो जाता है

सपनों में भी वो हो सकता है

मगरमच्छ

मगरमच्छ को अपनी आँखों से

हकीकत में तो देखा नहीं

टी.वी. में जब देखता हूँ

देखकर बहुत डरता हूँ    

.

टी.वी. में जब वह किसी को खाता है

हिड़मा को ऐसा लगता है

उसे मारना चाहता है

.

जिसके पास दिमाग होता है

वही बच पाता है

जानवरों को जब खाता है

मेरा दिमाग खराब हो जाता है

.

मुझे तो मगरमच्छ बेकार दिखता है

ये लेखन कवि तो कविता कहानियों में कुछ भी लिखते हैं

अच्छा बुरा दिखाते हैं

पर मुझे तो बुरा ही लगता है

.

यदि मगरमच्छ गाय की तरह पालतू होता

तब मुझे शायद अच्छा लगता

ये बात तो पक्की है

जिसे पहली बार मगरमच्छ दिखता है

शायद हर कोई डर जाता है |

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यहाँ मैं अपने दोस्त ‘आकाश’ की लिखी कविता भी आपके साथ बाँट रहा हूँ:

मगरमच्छ ज़्यादातर दिखाई नहीं देता

पानी में कितनी देर छुपके रहता

हमें पता नहीं रहता

इसके बड़े-बड़े दाँत

शिकार को कुचल-कुचल के चबाने में काम आता

बड़े-बड़े आदमी उससे डरते

लेकिन बच्चे नहीं डरते

क्योंकि इन्हें पता ही नहीं रहता

कि वह क्या है

जो भी मगरमच्छ के मुँह में लग जाता

उसे झट से पकड़ लेता

पानी में रहता, बाहर में रहता

दोनों जगह में रहता

ये कैसे सांस ले पाता

हमें पता ही नहीं चल पाता

मगरमच्छ से सभी लोग डरते

लेकिन बच्चे उससे खेलते |

.

मगरमच्छ पर कविताएँ हमने Roald Dahl की कविता ‘The Crocodile’ पढ़कर प्रतिक्रिया के रूप में लिखा है|

दो किस्से

मुझे मिली गिलहरी

मैं जब दशहरा छुट्टी में घर गया था तब एक दिन गाय चराने गया| मैं शिकार करने के लिए अपना हथियार गुलचा (गुलेल) नहीं ले गया था और चुपचाप गाय चरा रहा था| तभी अचानक ताड़ी झाड़ से एक चील (Black Kite) गिलहरी के बच्चे को पकड़कर महुआ पेड़ पर जा बैठा| एक मेरा दोस्त ‘वारे’ जाकर उसे पत्थर से मारा और चिल्ला दिया तब गिलहरी बच्चा नीचे गिर गया| हम उसे उठाकर घर ले गये| चील उड़कर दूर चला गया| हमने गिलहरी को भीमा को दे दिया| भीमा उसे खा गया|

कुम्माडूटो (Greater  Coucal) का शिकार

दशहरा छुट्टी में तीन दिन गाय चराने गया था| एक दिन दोस्त लोग बोले आज गाय चराते–चराते चूहा शिकार करने जायेंगे | तब मैं अपना गुलेल लेकर गया| (हमारे गाँव मे छिंद झाड़ मे रहने वाले चूहों को मार के खाते हैं|)

चूहा ढूंढनें के लिए बांस का डंडा ले गये और छिंद झाड़ मे चूहा ढूंढ के देखे पर नहीं दिख रहा था| इसलिए ठग होकर डंडा फेक दिए| अगर चूहा दिखता है तब मारने मे बहुत मजा आता है| पर नहीं दिखा तो ठग लगता है| तब चिड़ियों को मारने की कोशिश करते हुए गाय चरा रहे थे| जब हम गाय जंगल की ओर ले गए तब एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर कूदते हुए कुम्माडूटो (Greater  Coucal) दिखाई दिया| उसका मैंने चुपके से पीछा किया और गुलेल से मर दिया| वह फिर भी भाग रहा था| फिर कुछ दूर में गिरकर नीचे-नीचे जमीन पर भाग रहा था| मैंने उसे भगाया और पकड़ लिया | फिर गाय चराने वाले देखे और उस मरे हुए पक्षी को छूकर देख रहे थे| शाम को घर ले जाकर खा दिए| जितने भी गाय चराने गये थे | सभी बाँट कर खाए |

परीक्षा

परीक्षा जब आता है

हमको डर लगता है

सभी इससे डरते

फिर भी वे मेहनत करते

ना ठीक से खाते

ना ठीक से पीते

ना ठीक से सोते

वे बस इतना चाहते

अच्छे अंक से पास हो जाते

लिखने तो जाते डर-डर के

लिखते हैं पेपर थर-थर के

जो पढ़ा वो लिखते

जो नहीं पढ़ा वो पीछे झाँकते

पेपर अच्छा बना वो

खुश होकर आते

जिनका अच्छा नहीं बना वो

दुखी होकर आते

परीक्षा जब आता है

स्कूल में भूकंप आ जाता है

खूबसूरती

पौधे में जब फूल खिले होते हैं

तब दिखते हैं सुन्दर

फूल थोड़े होते तो

दिखते हैं खाली

पेड़ होते जब होते पत्ते

दिखते हैं हरे-भरे

पतझड़ में जब पत्ते गिरते तो

दिखते हैं पेड़ खाली

जब एक बच्चा पैदा होता है

तब दिखता है वो प्यारा

जवान हो जाता तब भी लगता सुन्दर

पर जब वह बूढ़ा हो जाता

तब नहीं होती है खूबसूरती

जब कपड़ा नया होता

बहुत पहनने का मन करता

जब पुराना हो जाता

तब फेंकने का मन करता

जब जानवर, पक्षी छोटे होते

बहुत सयाने लगते

जैसे बूढ़े हो जाते

तब खूबसूरत दिखते या नहीं दिखते

ये मुझे पता नहीं

चित्र: पोज्जा वेट्टी

सपना

किसी का होता है अपना

कुछ करने का सपना

ठंड लगे तो मत कांपना

आग जलाकर तापना

मुसीबतें तो आती है

मन जो चाहती है

गाय जब घांस चरती है

घांस खाकर पेट भरती है

नाव डूबने का रहता है

नदी सूखने का रहता है

पानी तो बहता है

कोई भी कुछ कहता है

पर हमें अपना लक्ष्य तय कर जाना है

वह सपना पूरा करके रहना है

मैं कविता कैसे लिख पाता हूँ?

पहले मुझे कविता लिखना नहीं आता था|

हमारे क्लास टीचर नीरज सर हमें बहुत अलग-अलग कविता पढ़कर सुनाते है और वे खुद भी कविता लिखकर सुनाते रहते हैं|

कविता सुनाकर हमें बोलते हैं कि तुम भी कविता लिखो अगर कविता फूट रहा हो तो|

हमारे क्लास में लगभग 50% लोग कविता लिखने का प्रयास करते हैं| हर दिन कविता लिखकर सुनाते हैं| कुछ लोग जो कविता लिखते हैं उनके नाम है- लक्ष्मीनाथ, आकाश, सोमरू, रमेश, देवनाथ, हिड़मा, जगदीश, गणेश, विकास, और भी कुछ दोस्त|

मैं जब कोई कविता पढ़ता हूँ तो मेरे अन्दर अपने आप कविता फूट जाता है और तब मैं कविता लिखता हूँ| मुझे आसपास जो दिखता है उसी के ऊपर कविता लिखता हूँ| मुझे कविता लिखने में बहुत मज़ा आता है| मैं ज़्यादातर प्रकृति, लोगों के ऊपर, आज़ादी, फूल-फल और पेड़ के ऊपर कविता लिखता हूँ क्योंकि ये सभी मेरे आसपास हैं| इन्हें देखकर मेरे दिमाग में अपने आप कविता बनने लगता है और मैं लिखने लगता हूँ|

जब मेरे अन्दर से कविता निकलता है तब लिखते-लिखते कभी-कभी फँस जाता हूँ| जैसे चिड़िया जाल में फँस जाता है| लेकिन जो कविता लिखते रहता हूँ तो अचानक कविता फिर से बनने लगता है| जैसे मुझे खिलौने पसंद है पर मम्मी मना कर देती है पर कभी-कभी खरीद कर भी देती है|

मेरे एक दोस्त लक्ष्मीनाथ ने अजीब सी ‘कविता लिखने’ पर कविता लिखी है, ये पढ़ें:

मैं सोचा करता हूँ
चेहरे पे कलम टिका के
बरसात में लिखता हूँ
कविताएँ झट-पट से
न जाने कैसे फूटे थे
कविताएँ हमारे अन्दर से
रात सावन की
मन भावन की
यह कविता आए कैसे
मेरे अन्दर की
मुझको लगा गहरा सदमा
मैंने भी धो लिया बारिश में
सपना, बिना घड़ी साबुन के

चित्र: पवन करटामी

तोता

मैं देखता हूँ

बच्चे स्कूल में होते

मारा-पीटा करते

फिर रोते

ऐसा क्यों?

मुझे लगता है शायद

बैठे-बैठे पढ़ने की नहीं है आदत

जब लगती स्कूल में

छुट्टी की घंटी

तब शुरू हो जाते बच्चे

दौड़ते हुए चिल्लाते हैं छुट्टी

शायद वे सोचते होंगे

क्लास रूम को जेल

इसलिए तो ऐसा भागे

मिली जैसे जेल से आज़ादी

क्लास से उसका मन करता

बाहर निकलने का

गुरूजी के डंडे को देख

बेचारा बोझ भरा बैठा

शायद वह सोचता होगा

ये भी कोई जीना है साला

बंद पिंजरे में तोते के समान  

बारिश

आसमान में काले बादल छाए

गिडर- गिडर सी आवाज़ आए

एक व्यक्ति के गाल पर एक बूंद टपका

घर के कपड़े अन्दर करने इधर-उधर भटका

कुछ ही देर में बहुत सारे बूंद गिरे

लोग छाता पकड़कर घूम रहे

बारिश हो रही छर-छर

लोग चिक्कल में चल रहे चिपर-चपर

किसान खेतो में फसल उगाए

चारो तरफ हरियाली लाए

मोर नाचता बादल गरजने पर

इंसान बन जाता मछुआरा

बारिश होने पर

मेरी स्कूली शिक्षा और बचपन : भाग 2

कक्षा तीसरी में हम लड़कों को भंडारास से गोरली वाला स्कूल में भेज दिए और गोरली के लड़कियों को भंडारास भेज दिए| जब लड़के और लड़कियों को अलग कर रहे थे तब हम लोग भंडारास स्कूल छोड़कर नहीं जाना चाहते थे| हमें बुरा लगा क्योंकि हम लोग लड़कियों से दोस्ती किये थे| लेकिन मैं थोड़ा सा खुश था क्योंकि गोरली हमारे गाँव नयानर से 3 km था|

जब मैं और मेरे दोस्त यहाँ पहुँचे तो अलग सा महसूस कर रहे थे| मैं तो थोड़ा सा डर रहा था कि यहाँ ले लोग हमसे होशियार होंगे| पर अच्छा लगा कि वहाँ सोने की अच्छी व्यवस्था थी|

लड़के और लड़कियों को अलग करने से बहुत लोग स्कूल छोड़ दिए| जैसे कि भंडारास के आसपास वाले लड़के कह रहे थे कि गोरली बहुत दूर है हम वहाँ नहीं जायेंगे| गोरली के लड़की लोग कह रहे थे कि भंडारास दूर है| भंडारास वाले सबसे ज्यादा एक चीज़ से डर रहे थे, वो है नदी| नदी से इसलिए डरते थे क्योंकि नदी बहाकर ले जाता है|

नए स्कूल में दो दिन अजीब सा लगा पर कुछ दिन बाद हमारे नए दोस्त बन गए| मैं तो खुश था क्योंकि मेरे गाँव के मनीष और बुदेश मेरे दोस्त थे| जब कोई मुझे मारता या छेड़ता तो मेरे दोस्त उसको बहुत पीटते थे|

यह स्कूल हरा-भरा था| सामने बहुत सारे इमली के पेड़ थे| अन्दर आम के पेड़ लगे थे लेकिन हम आम पकने से पहले ही तोड़ के खाते थे| पपीता पेड़ भी 5-6 ठन था| ज़्यादातर पपीता का सब्जी बनाया जाता था| कमला के छोटे पेड़ थे जो फले नहीं थे| मूंगा का एक बड़ा पेड़ था जो कि हमें छत के ऊपर चढ़ने में मदद करता था| यह बहुत कम फलता था| और भी छोटे मूंगा के पेड़ थे जो नहीं फलते थे| एक फनस का पेड़ भी था जो नहीं फल रहा था|

स्कूल बाउंड्री से टिका हुआ एक मैदान था| यह मैदान काफी साफ़ रहता था| मैदान के किनारे एक मंदिर था| इस मंदिर का नाम ठोटियाला बाबू था| मैदान के किनारे जंगल था| यहाँ पर (हमारी भाषा में) डीजल कर्रे नाम का एक पेड़ था और तेंदू और टाकामाड़क, आम पेड़ भी थे| यहीं पर नदी है जहाँ हम लोग नहाने जाते थे| उस जगह का नाम कुमाघाटी रखे हैं| नदी के किनारे कुछ पेड़ थे जैसे (गोंडी से) मंगमाड़ा, वेड़मामाड़ा, मड़्दमाड़ा, पाऊड़कटोंडा|

नदी के उसपार ईतागुफा गाँव है जिसे कुमाघाटी पार करके जाना पड़ता है| इस गाँव में एक जाम पेड़ है जो फलता है और नीबू पेड़ भी है| इस गाँव के चारो तरफ घना जंगल और पहाड़ी है| हम लोग लकड़ी इधर ही से ले जाते थे|

गोरली स्कूल में दोस्त लोग डराते थे कि यहाँ बच्चे चोरी करने वाले चोर आए थे| हम लोगों के यकीन नहीं करने पर एक टूटी खिड़की दिखाते थे और बोलते थे कि यहीं से चोर आए थे| ऐसे में हम बहुत डर गए|

हम लोग स्कूल में चार बजे उठते थे| उठने में हमें मेड़ी भैय्या मदद करते थे जो यहाँ के चौकीदार थे| चार बजे उठकर, बाउंड्री कूदकर मैदान में कदम रखते थे| तब 5 राउंड मैदान के लगाते थे| कुछ लोग दौड़ने के लिए ठगरू होते थे लेकिन खेलमंत्री उन्हें दौड़ने के लिए बोलता था| दौड़ने के बाद सभी लाइन में खड़े हो जाते थे और 2 जन सामने जाकर पीटी करवाते थे| यहाँ दो कबड्डी मैदान थे| एक में बड़े बच्चे और एक में छोटे खेलते थे| मैं छोटे में खेलता था और फिर पाँचवी में बड़े लोगों के साथ खेलता था| कबड्डी में कुछ लोगों को चोट लग जाता था|

खेल के बाद फिर बाउंड्री कूद के स्कूल वापस जाते थे| फिर कम्बल, मच्छरदानी मोड़कर सफाई करते थे| स्कूल कैंपस में झाड़ू लगाते थे| यहाँ फनस, आम, कमला, मूंगा के पत्ते गिरे हुए होते थे| इमली के पत्ते भी बहुत गिरते थे| झाड़ू लगाने के लिए जाटी का इस्तेमाल करते थे| ये घर से ले जाते थे| रूम के अन्दर या परची में झाड़ू लगाने के लिए एक दूसरी झाड़ू का उपयोग करते थे| ये झाड़ू नदी पार करके जाने से मिल जाता है| इसे हमारी भाषा में कसूर कहते हैं|

कुछ लोग झाड़ू नहीं लगाते थे| ये बड़े बच्चे थे जो कि छात्रनायक जैसे लोग थे| मेसमंत्री अपना चाँवल, सब्जी देने में रहता था| सभी बच्चे झाड़ू लगाकर, साबुन पकड़कर, बाउंड्री चढ़कर, मैदान से होते हुए नदी जाते थे|

वहीँ जंगल में दातुन तोड़कर, चबाते, दांतों को रगड़ते हुए जाते थे| कपड़ा धोकर, नदी में डुबकी लगाकर नहाते थे| फिर जल्दी से नाश्ता ख़तम हो जाएगा बोलके फटाफट नहाकर आते थे| नाश्ता में हमें पोहा, सूजी, मटर चना मिलता था| जो भी नहाते रहता और नाश्ते में लेट होता वो अपने दोस्त को बोलता कि मेरा भी नाश्ता झोक देना यार| खाना और नाश्ता चपरासी भैय्या लोग बनाते थे| चपरासी भैय्या लोगों के नाम हान्दा, सुकुलधर, गौतम बेलसरिया और धनसाय थे|

इनमें से सबसे ज्यादा सुकुलधर भैय्या का बनाया वाला खाना पसंद करते थे| ये भैय्या भंडारास के थे| हम लोग सुकुलधर भैय्या को भंडारास से चुन के लाए थे|

दूसरा हान्दा भैय्या का खाना पसंद करते थे| वे बहुत चिल्लाते थे| वे मेंढकपारा, गोरली के ही थे जो कि लगभग 1 km होगा| वे लड़के लोगों का कपड़ा भी सिल देते थे| इनके पास सिलाई मशीन भी है|

गौतम भैय्या रोकेल के थे और यहाँ पर रूम में रहते थे| वे बहुत लम्बे थे| 12वी तक पढ़े थे इसलिए हम लोगो के कक्षा में आकर पढ़ाते थे|

धनसाय भैय्या थोड़ा सा ठगरू थे| इनका गाँव भार्वेरास है| वे बहुत मोटू थे और height में टिंगनू थे|

नाश्ता हमें 7-8 बजे के बीच मिल जाता था| नाश्ता खाकर थोड़ा सा पढ़ते थे और फिर 9 बजे खाना घंटी लगता था| खाना खाकर हम स्कूल बैठते थे|

इस स्कूल का अधीक्षक रामाराव कोड़ी था पर हम लोग उन्हें कोड़े सर बोलके बुलाते थे| ये कक्षा में हिंदी और पर्यावरण पढ़ाते थे| इंग्लिश और गणित एक मैडम पढ़ाती थी| लेकिन मैडम का ट्रान्सफर गादीरास मे हुआ| मैडम गादीरास की ही थी| फिर कोड़े सार अकेले हो गए|

क्लास के समय भी हम लोग अपने रूम में सोते रहते थे| क्लास में भी सोते थे| गुरूजी तो अकेले थे, सभी क्लास को संभाल नहीं पाते थे| हम कभी भी शौच करने नदी चले जाते थे| फिर 1 बजे मध्यान्ह भोजन छुट्टी होता| भोजन खाकर लड़के अपने-अपने रूम में आराम करते हुए सो भी जाते थे| 2 बजे स्कूल बैठकर सीधा 4 बजे छुट्टी होता था| उसके बाद सभी बच्चे ड्रेस बदलकर मैदान जाते और फिर लाइन लगाकर, बाँटकर, क्रिकेट खेलते| खेलने के लिए सर लोग भी आते| सर लोग आस-पास से गाँव में पढ़ाते थे और पड़ोस में क्वार्टर में रहते थे|राजू, नेताम, सोनकर और राकेश वाकड़े खेलने वाले थे और चौहान, नेट्टी, मरकाम और शोरी नहीं खेलते थे| चारो गुरूजी अच्छा खेलते थे| सोनकर जो भी बच्चा गेंद नहीं पाता था उसे ‘हट रे कांदा’ बोलते थे| लेकिन हम बच्चों को बैटिंग नहीं मिलता था| मुझे भी बैटिंग नहीं मिल रहा था| लेकिन मजबूरी में खेलना पड़ता था|

जो भी बच्चा क्रिकेट नहीं खेलता उसे छात्रनायक मीटिंग लेकर सजा देता था| लेकिन कुछ लोग ईतागुफा जाम, नीबू चोरी करने जाते थे| जाम झाड़ वाला मालिक भगाकर ले जाता था पर भग जाते थे| साढ़े पाँच बजे तक खेलकर फिर नदी में हाथ पैर धोने जाते थे| धोकर आकर फिर पारी हिसाब से रूम में झाड़ू लगाते थे|

फिर प्रार्थना होता था| प्रार्थना में वंदना, भजन आदि गाते थे| गाकर गिनती करते थे| इस बालक आश्रम में 40 जन भी कुल मिलाकर नहीं होते थे| फिर थोड़ा सा पढ़ते और फिर खाना घंटी लगाते थे| खाने वाले प्लेट में से सिर्फ कुछ ही प्लेट ठीक थे| बाकि प्लेट बच्चे लोग खेलते समय पत्थर क्या-क्या लगा के फोड़ दिए थे| खाना खाकर फिर थोडा सा पढ़कर देखते थे| 8-9 बजे सो जाते थे| यहाँ सौर ऊर्जा वाला बिजली था| ज्यादा ऊर्जा नहीं रहने के कारण जल्दी लाइट गोल हो जाता था|

शनिवार को सुबह स्कूल होता था| 7 बजे बैठकर, फिर 10 बजे नाश्ता करके फिर बैठते थे| 12 बजे छुट्टी होता था| यहाँ पर टी.वी. नहीं था इसलिए सर लोगों के यहाँ देखने जाते थे| सर लोगों के रूम बंद होने पर गाँव में देखने जाते थे|

यहाँ बच्चे महुआ-इमली बीनकर बेचते थे| हवा से गिरी इमली बीनकर या फिर ईतागुफा में इमली डंडा मारकर गिराते थे और इकठ्ठा करके शनिवार बाजार में बेच देते थे| मैं भी एक बार गंगा और जोगा नाम के लड़कों के साथ मिलकर 450 रुपये का बेच दिया| चार बजे उठकर जंगल में छुपाया था| फिर उजाला होने के बाद सुबह बाजार में बेचकर आया|

गर्मी में परीक्षा समय self-study करने जंगल जाते थे| उधर तेंदू, चार, काजू खाकर, नदी का पानी पीकर रहते थे| Self study करने जाते और गुलेल पकड़कर शिकार करते| शिकार लाकर मटन में आलू मिलाकर खाते थे| हम लोग नदी में मछली भी कब-कब पकड़कर खाते थे| जंगल से सब्जी भी लाकर खाते थे|

यदि हमें घर जाना होता तो कभी भी भाग जाते थे|

इस स्कूल में बच्चे बहुत अच्छा क्रिकेट खेलते थे| इसलिए अलग अलग स्चूलों से टक्कर लेते थे| कभी पेदेलनार या दूधीरास वालों को खेलने बुलाते या हम लोगों को वो बुलाकर पैसे डालकर खेलते|

यहाँ के अधीक्षक बहुत गाली देते थे जैसे- सूअर ने तो, हाथ पैर बांधकर नदी में फेंक दूंगा, नालायक ने तो, बेवकूफ, अपने आपको ज्यादा होशियार समझता है क्या…. आदि|

कुछ दिन बाद राकेश वाकड़े सार जो कि क्रिकेट खेलते थे उनका ट्रान्सफर हमारे यहाँ हुआ| वे हम लोगों को अच्छा गणित और इंग्लिश पढ़ाते थे|

हम लोग स्कूल में सब्जियाँ भी उगाते थे| एक बार भिन्डी उगाये थे| भिन्डी बहुत फला तो खाली भिन्डी ही खाते थे| लौकी भी उगाये थे|

गाँव में दो दूकान है| वीरो दूकान और सोमारू दूकान| अब शायद तीन दुकान हो गए हैं}

जब में पाँचवी पहुँचा तब स्कूल में बोर खुदाया गया तब थोड़ा सा पानी का सुविधा हुई|

शनिवार-रविवार को हम लोग और भी खेल खेलते थे जैसे- चक्का और बाटी| चक्का खेल में चप्पल से गोल काटते हैं| इस खेल में इधर-उधर बराबर खिलाड़ी होते हैं और बीच में एक लकीर खीचते हैं| चक्का को एक तरफ वाले खिलाड़ी दूसरे तरफ फेंकने पर दूसरे तरफ वाले खिलाड़ी चक्का को मारेंगे और चक्का रुकने पर वो टीम चक्का फेंकेगी| इस खेल में बहुत मज़ा आता है| चक्का को डंडा से मारते हैं| यह खेल मेरे मनपसंद खेलों में से एक है| थोड़ा-थोड़ा क्रिकेट जैसा ही है|

एक और चपरासी भैय्या आए थे| उनका नाम हिड़मा है| वे स्कूल के समय छुट्टी होने की घंटी लगाते थे और परीक्षा समय पानी पिलाते थे| हमें वे बोलते थे ‘केवल पानी नहीं पेपर अच्छा बनाओ’|

रात के समय शौच लगने पर नदी जाने से डरते थे इसलिए जग मग्गा से हैण्डपंप का पानी लेकर हैंडपंप के थोड़ा सा दूर जाकर बैठ जाते थे| पास में एक घर था| वहां के लोग हमें गाली देते थे और कहते कि इधर मत बाहर करो|

कभी-कभी गाँव वालों के साथ मिलके खरगोश शिकार भी जाते थे|

गोरली का स्कूल मुझे बहुत अच्छा लगा| पूरी तरह से हमें आज़ादी थी| लेकिन जब मैं गोरली से पाँचवी पास करके घर आ रहा था तब मुझे बहुत दुःख लगा| कुछ दोस्त आधे रास्ते तक छोड़ने आए थे| मुझे ऐसे लग रहा था कि गोरली स्कूल में ही पढूँ पर ये स्कूल सिर्फ पाँचवी तक ही था|

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